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प्रगतिशील भोजपुरी समाज ने भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की संवैधानिक मांग की


प्रगतिशील भोजपुरी समाज ने भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की संवैधानिक मांग की

प्रमोद सिन्हा

मनुष्य सर्वोत्कृष्ट सामाजिक प्राणी है। मनुष्य के सामाजिक सरोकार कासबसे सशक्त माध्यम उसकी मातृभाषा है। मनुष्य को शैशवास्था से युवावस्था तक मातृभाषा के साथ सांस्कृतिक धरोहर विरासत के रूप में प्राप्त हो जाती है। हम सभी की मातृभाषा ही हमारे भावनात्मक और वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज, सुगम और सुस्पष्ट माध्यम् है। उसकी इस मातृभाषायी अभिव्यक्ति को उसके ही समाज में, उसके ही राज्य में, उसके हीदेश में संवैधानिक मान्यता न हो तो उस समाज, राज्य, देश के व्यष्टि और समष्टि कामानसिक विकास अवरूद्ध हो जाता है, मन कुण्ठित लुण्ठित हो जाता है। आज पश्चिमीबिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के 25 जिलों के 14-15 करोड़ भोजपुरिया लोगों को भोजपुरीभाषा के संवैधानिका मान्यता न होने के कारण भाषायी अवदमन का शिकार होना पड़ रहाहै।भोजपुरी भाषा में किसी भी उन्नत भाषा के सभी गुण और लक्षण मौजूद हैं।

भोजपुरी का व्याकरण शब्दकोश, लोक संस्कृति एवं लिखित साहित्य अत्यंत समृद्ध है।भारत के प्रथम राष्ट्रपति, डा० राजेन्द्र प्रसाद एवं दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल

बहादुर शास्त्री जैसे श्रेष्ठ राजनेता, संत कबीर, गुरु गोरखनाथ, संत रविदास जैसे महानसंत, मुन्शी प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन जैसे महान लेखक एवं उपन्यासकार इसी भोजपुरीमाटी के अमर सपूत हैं। इनता ही नहीं हमारे वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

जी का सांसदीय क्षेत्र भी शिव की नगरी वाराणसी ही है। इसके बावजूद 14-15 करोड़लोगों की मातृभाषा भोजपुरी को अभी तक भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची मेंसामिल नहीं किया गया है। इस क्षेत्र में कोई बड़े कल-कारखाने नहीं है, जो यहाँ केकिसानों, मजदूरों को रोजगार प्रदान कर सके। 70 प्रतिशत लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थिति अति दयनीय है। मातृभाषीयी अवदमन के कारण भोजपुरी

भाषाभाषी लोग आज हीन भावना से ग्रसित हैं। सरकारी और गैर सकारी कार्यालयों एवंप्रतिष्ठानों में, नयायालयों में, शैक्षणिक संस्थानों में भोजपुरी भाषा का व्यवहार न होने के कारण आम भोजपुरिया लोग अपने भावों और विचारों को ठीक से व्यक्त नहीं कर पा रहे.। परिणामस्वरूप उन्हें कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा प्रताड़ना और शोषण का शिकारहोना पड़ता है।भोजपुरी मातृभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतुप्रगतिशील भोजपुरी समाज पिछले कई वर्षों से प्रयास रत है। इस क्षेत्र के कई सांसदोंद्वारा भी इसकेलिए संसद में आवाज उठाई गई।मा० जगदम्बिका पाल नोमर है। इसमें गोरखपुर के सांसद अभिनेता रवि किशन जी. दिल्ली के सांसद श् मनोज तिवारी जी एवं आजमगढ़ के सांसद दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने सांसद में भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्राप्तकरने के लिए संसद में आवाज उठाई थी। किन्तु अभी तक भोजपुरी भाषा को संवैधानिकमान्यता प्राप्त नहीं हो सकी। प्रगतिशील भोजपुरी समाज में माननीय प्रधानमंत्री केवाराणसी स्थित कैम्प कार्यालय के माध्यम से भी इस मांग को भिजवाया है, लेकिन इसतक कोई ध्यान नहीं दिया गया। प्रगतिशील भोजपुरी समाज में भोजपुरीभाषा-भाषी 26 जिला मुख्यालयों पर धरना के माध्यम से भोजपुरी मालूभाषा को भारतीयसंविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करने दिनांक11.12.2023 को एक दिवसीयधरना का आयोजन किया धरनोपरांत इस ज्ञापन के माध्यम से आऐसे महत्वपूर्ण विषय पर तुरंत ध्यान देकर अपने स्तर से आवश्यक कार्रवाई पूरी करमातृभाषा भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की कृपा करें। यदि समयरहते ऐसानहीं होता है तो अपनी माटी और मातृभाषा से प्रेम करने वालेभोजपुरिया लोग चुप नहींबैठेंगे और आन्दोलन के लिए बाध्य होंगे।

आशा आ विश्वास बा कि हमनी के ई महत्वपूर्ण मांग पर जरूर ध्यान दिहल जाई ।

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