ताकत भोजन में नहीं, पाचन शक्ति में है: डॉ. अमित कुमार
योग की प्राचीन जीवन पद्धति वर्तमान पीढ़ी के लिए उपयोगी: सहायक कुलसचिव
सुहेलदेव विश्वविद्यालय में “विरासत से विकास: योग की भूमिका” विषयक परिचर्चा आयोजित,
योग से संभव है मन की शांति: प्रो. प्रशांत
आजमगढ़। महाराजा सुहेलदेव विश्वविद्यालय आजमगढ़ में सोमवार को “विरासत से विकास: योग की भूमिका” विषय पर परिचर्चा महाराजा सुहेलदेव विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित सेमिनार कक्ष के फैसिलिटी सेंटर में आयोजित किया गया । जिसमें कार्यक्रम की शुरुआत सर्वप्रथम ज्ञान की देवी मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं विधिवत दीप प्रज्वलन के साथ हुई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फिजिकल एजुकेशन डीम्ड विश्वविद्यालय ग्वालियर मध्य प्रदेश के योग विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अमित कुमार रहे । अध्यक्षता विश्वविद्यालय के सहायक कुल सचिव डॉ महेश कुमार श्रीवास्तव ने किया । परिचर्चा का विषय रहा प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विकास में योग की भूमिका ।विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. प्रवेश कुमार सिंह ने बताया कि श्री राज्यपाल/ कुलाधिपति श्रीमती आनंदीबेन पटेल व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार के कुशल निर्देशन में विश्वविद्यालय में 3 सप्ताह का विभिन्न परंपराओं एवं प्राकृतिक तरीके से योग विद्या पर न सिर्फ चर्चा परिचर्चा अपितु युवा पीढ़ी को प्रकृति के उपहार की अनमोल जानकारी देने पर भी केंद्रित रहा । मुख्य अतिथि के रूप में मध्य प्रदेश के ग्वालियर से पधारे लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फिजिकल एजुकेशन ड्रीम्स विश्वविद्यालय के योग विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ अमित कुमार ने कहा कि योग से शरीर के हारमोंस बैलेंस हो जाते हैं । उन्होंने कहा कि भारत तनाव की राजधानी बनता जा रहा है। हम योग से पहले अपने चरित्र और मन को कैसे शांत रखें यह भी ज्यादा उपयोगी है। आजकल तो सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग? इस उक्ति से हमें उबरना होगा । आहार ,बिहार, सोना-जागना यदि नियमित हो जाए, तो निश्चित ही हम काफी समस्याओं से उबर जाएंगे। उन्होंने मन को शांत करने के लिए योग को अपनाने की तरकीब भी बताई । योग की प्राचीन परंपरा को आधुनिक जीवन के लिए उपयोगी बताया. उन्होंने कहा कि मानव जाति तन, मन से स्वस्थ रहेगी तभी हम विकास कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि योग हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल रहेगा तभी हम जीवन का आनंद ले पाएंगे. स्वस्थ रहने का वरदान भारतीय परंपरा में पहले से था और आज योग को पूरा विश्व मान रहा है।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव डॉक्टर महेश श्रीवास्तव ने कहा कि मस्तिष्क में नए विचारों को जन्म लेने के लिए मन का शांत होना बहुत जरुरी है. आज के इस दौर में योग से ही मन की शांति संभव है. उन्होंने कहा कि मन का विश्राम नहीं हो पा रहा है. इसके पीछे मोबाइल और कंप्यूटर जैसे डिजिटल यंत्रों की भी बड़ी भूमिका है. उन्होंने कहा कि योग व्यक्ति को ऊर्जावान बनाता है और सम्पूर्ण जीवनशैली पर सकारात्मक प्रभाव डालता है. यह केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक ऐसी साधना है जिसे अब वैज्ञानिक प्रमाणिकता भी प्राप्त हो चुकी है। कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर प्रशांत राय ने कहा कि आज का विषय विरासत से विकास योग की भूमिका पर परिचर्चा है यानी हमारे बाप दादा और पूर्वज किस तरह स्वस्थ रहते थे उसको आगे बढ़ाने के लिए और क्या किया जा सकता है इसी पर केंद्रित रहेगी अपने आंशिक संबोधन में उन्होंने कहा कि योग भारतीय ग्रामीण जीवन और लोक परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है. हम सबको इस बात का विशेष गर्व है कि हजारों साल पूर्व प्रारंभ हुई योग परंपरा का लाभ आज पूरा विश्व उठा रहा है साथ ही उसे आत्मसात भी कर रहा है . इस प्रकार की परम्पराओं को युवा पीढ़ी अपने से जोड़े रखें। हमें विरासत में योग मिला है इसे जीवन से जोड़कर आगे ले जाना है।कार्यक्रम में जिन लोगों की गरिमामय उपस्थिति रही उसमें प्रमुख थे डॉ. प्रवेश कुमार, डॉ. जयप्रकाश, डॉ. शुभम, डॉ. प्रियंका ,डॉ. त्रिशिका, डॉ.ऋतंभरा, डॉ. शिवानी, डॉ. सौरभ, डॉ. नितेश ,डॉ. अनुराग, डॉ. शिवेंद्र एवं भूपेंद्र पांडे , प्रियांशु, अभिलाष आदि सहयोगियों के साथ-साथ भारी संख्या में छात्र छात्राओं की उपस्थिति रही।