रागेय राघव सुयोग्य कलमकार एवं हिंदी साहित्य के अनमोल रत्न,- प्रो. संजीव कुमार
वि. वि. द्वारा पितृ पक्ष में रागेय-राघव का स्मरण सौभाग्य का विषय,-प्रो.योगेंद्र सिंह
आजमगढ़। महाराजा सुहेलदेव विश्वविद्यालय आजमगढ़ परिसर के प्रशासनिक भवन में स्थित कुलपति सभागार में हिंदी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान आगरा में जन्मे रागेय राघव जी की पुण्यतिथि समारोह मनाया गया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार एवं मुख्य अतिथि के रूप में पधारे जननायक विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. योगेंद्र सिंह ने संयुक्त रूप से मां सरस्वती एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी रागेय राघव जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया।
वि.वि.के मीडिया पभारी डा.प्रवेश कुमार सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर के प्रशासनिक भवन में कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार जी की अध्यक्षता में रागेय राघव जी की पुण्य तिथि पूरे मनोयोगपूर्वक मनायी गयीं। अपने आशिक सबोधन मे कुलपति ने कहा कि आगरा मे जन्म लेने वाले रागेय राघव हिंदी साहित्य के अनमोल रत्न थे ,इतने कम समय में इतना विस्तृत साहित्य लिखने की कला बिरले ही लोगों में है। गद्य एवं पद्य के साथ-साथ इतिहास पक्ष पर भी उनकी मजबूत पकड़ थी। दक्षिण भारतीय परिवेश में पले बढ़े इस साहित्यकार ने हिंदी के प्रति गजब का झुकाव था, क्योंकि यह सर्व- विदित है कि प्रकृति भी अच्छे लोगों को लंबी उम्र नहीं देती क्योंकि अच्छे लोग ईश्वर को भी प्यारे होते हैं। इसीलिए इतनी कम उम्र में लगभग 100 किताबों का लेखन कार्य करना दुरुह विषय था, गद्य पद्य के साथ-साथ पत्रकारिता पर भी साहित्यकार ने हाथ आजमाय। इसलिए उनके द्वारा किया गया कार्य हिंदी साहित्य के लिए एवं हिंदी प्रेमियों के लिए अमूल्य धरोहर हो गई। पिता तमिलनाडु से एवं मां कर्नाटक की होने के बावजूद हिंदी पर इतनी बेजोड़ पकड़ निश्चय ही काबिले- तारीफ है ,हम सभी हिंदी प्रेमियों से अनुरोध करते हैं कि वे रागेय राघव के बताए गए रास्ते पर चलकर समाज का मार्गदर्शन करें, क्योंकि साहित्यकार एवं कलमकार राष्ट्र का समाज का मार्गदर्शन होता है।
इस पुण्यतिथि समारोह के मुख्य वक्ता जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया के संस्थापक कुलपति प्रो0योगेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि पितृ पक्ष के दौरान डा0रांगेय राघव का पुण्य स्मरण करना सौभाग्य का विषय है। उन्होंने अपने अल्पजीवन में लोकमंगल को केन्द्र में रखकर चिंतन, मनन और लेखन किया, जो भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र है। उपन्यास, कहानी और नाटक के अलावा डा0रांगेय राघव ने इतिहास, पुरातत्व, पत्रकारिता, नाथपंथ, चित्रकला और अनुवाद के क्षेत्र में उल्लेखनीय रचनाएं की है। जिससे उनका व्यक्तित्व बहुआयामी और कृतित्व बहुवर्णी बन जाता है। महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ के अन्तर्गत स्थापित रांगेय राघव शोधपीठ के द्वारा डा0रांगेय राघव के व्यक्तित्व, कृतित्व और उनके विचारों के प्रचार प्रसार की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। यही इस शोधपीठ की सार्थकता भी है।
इस अवसर पर रांगेय राघव शोधपीठ के प्रभारी प्रो0सुजीत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि एक संस्कृतनिष्ट जमींदार और पुरोहित परिवार में जन्म लेने के बाद भी समाज के उपेक्षित वर्ग के प्रति संवेदनशीलता डा0रांगेय राघव को महान बनाती है। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन, बंगाल के अकाल और नाथ पंथ के प्रभाव के चलते वे आमजन के खास रचनाकार बन गए। वे चाहते तो बड़े ऐशो आराम के जीवन जी सकते थे किन्तु जीवनपर्यंत लेखन कार्य को चुना।
कार्यक्रम में धन्यवाद प्रस्ताव विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव डॉ. महेश कुमार श्रीवास्तव ने दिया उन्होंने कहा कि सबसे पहले इतना खूबसूरत कार्यक्रम करने के लिए आयोजन समिति विशेष रूप से प्रो. सुजीत श्रीवास्तव व उनकी टीम को बधाई। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, गैर शिक्षक कर्मचारी एवं भारी संख्या में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही कार्यक्रम का संचालन डॉ. त्रिशिका श्रीवास्तव ने किया ।